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Tuesday 30 September 2014

*** पा लिया अब तुमको ***



सर्द होती यादें तेरी
ज़िन्दगी के
उसी अनजान
पहलू की तरह हैं
कि जिनसे दो दिनों का
लेकर क़र्ज़
मैं तेरे
ख़यालों से लबरेज
अपनी मौजूँ दुनिया में
अरसे से अकेला ही जिया.

तुम,
आ भी जाती
मेरे ख़यालों की
सारी सीमाओं को लाँघकर
पर जो हाशिए पर
तुमने ही
कभी लकीर खींची थी;
उसी को अपनी
अधूरी पहचान में लपेटकर
तुम्हें पा लेने की
ख़ुद से ही
मैंने आज फिर
अनुशंसा कर ली है.***

    --- अमिय प्रसून मल्लिक.


(तस्वीर साभार: www.paintingsilove.com )

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