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Tuesday 30 September 2014
*** पा लिया अब तुमको ***
सर्द होती यादें तेरी
ज़िन्दगी के
उसी अनजान
पहलू की तरह हैं
कि जिनसे दो दिनों का
लेकर क़र्ज़
मैं तेरे
ख़यालों से लबरेज
अपनी मौजूँ दुनिया में
अरसे से अकेला ही जिया.
तुम,
आ भी जाती
मेरे ख़यालों की
सारी सीमाओं को लाँघकर
पर जो हाशिए पर
तुमने ही
कभी लकीर खींची थी;
उसी को अपनी
अधूरी पहचान में लपेटकर
तुम्हें पा लेने की
ख़ुद से ही
मैंने आज फिर
अनुशंसा कर ली है.***
--- अमिय प्रसून मल्लिक.
(तस्वीर साभार: www.paintingsilove.com )
Sunday 28 September 2014
*** ...तो तुम जीत गए ***
देखो,
मिलन- बिछोह का
आज कैसा सुन्दर दृश्य
इन बादलों में उभरा है
तुम इन्हें
काली घटाओं का
हमेशा नाम जो देती हो.
तुम्हारी यादों का
ये,
इक भँवर- सा रहा है
कि हमारे प्रेम का
इतिहास ही
कई मुमूर्ष कलंकों से
लिखा गया था;
सो, उन्हीं
बंद शिकस्तों में
मैंने
तुम्हारे प्रेम की जीत की
अपनी मृत होती
यादों से सजाकर
आज फिर
मुस्तैद मुनादी करवा दी है.***
--- अमिय प्रसून मल्लिक.
*** तुम आओगे तो...! ***
चलो न,
तुम्हें भी लिए चलती हूँ
समंदर के
उसी किनारे पे
कि जहाँ मोतियों- सी
पानी की
अथक बूँदों को
ले- लेकर तुम
अपने सपने गिनते थे!
आज भी
उसी किनारे पे
तुम्हारे
हज़ारों मोती
वहाँ ऐसे ही
अब भी,
सागर में विलीन पड़े हैं
कि तुम
कभी तो
यहां टूटे ख़्वाबों को
इन रेतों में
संभालने की
नयी टीस के संग
भरसक मेरी तरह
कोई तो जुगत करोगे.***
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