सुनो,
तुम्हारी बातों से
मैंने
अपने घरौंदे से
आज फिर
लिपटकर देखा है.
इसमें अब
कहाँ कोई
पहले की तरह
तेज़, मदमाती गंध है
वो तेरे संसर्ग की!
रिश्तों की सड़ांध का
यही भरसक
इस छोटे घर में
बेसुध मंज़र है.
घर तो वही अच्छा है,
क़रीब हो
बस एक अस्पताल जहाँ से,
और बेटी के
पढ़- लिख जाने का
पास ही एक स्कूल मिल जाए...***
--- अमिय प्रसून मल्लिक.
(चित्र साभार: गूगल)