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Friday 29 August 2014

*** अजनबी ***



तुम आज भी
घर के
कहाँ क़रीब हो,
मुज़रिम मैं ही नहीं
अपने रिश्तों के दरम्याँ!

जिसने कभी
घर की कोई
परवाह नहीं की,
कहने को हमेशा
भीड़ में पताका लेकर
घर से
दूर हो जाने की
कसक लहराता रहा.***

         --- अमिय प्रसून मल्लिक.

(चित्र साभार: गूगल)

3 comments:

  1. शुक्रिया कुलदीप जी!
    मैं अपने ब्लॉग्स के साथ वहाँ जुड़ गया हूँ. आपके स्नेह के लिए भी आभार!

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  2. बधाई, इस नये ब्लॉग के लिए !

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